वर्तमान युग में डायबिटिक एक सामान्य रूप से पाई जाने वाली बीमारी है डॉ अक्षय भंसाली के अनुसार 5 साल या उससे अधिक समय तक बने रहने के बाद डायबिटीज का आँख के परदे पर असर प्रारंभ हो सकता है डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसमे खून की छोटी -छोटी नसे प्रभावित होती है आँखों के पर्दों की सूक्षम रक्त वाहिकाएँ जब डायबिटीज से प्रभावित होती है तो उनमें रिसाव की भी सम्भावना रहती है
डायबिटीज के कारण पर्दे पर होने वली बीमारी तीन प्रकार की होती है -
1..सामान्तय डायबिटिक रेटिनापेथी की शुरूआती अवस्था यानी (BDR) में किसी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है ऐसे मरीजो को शुगर लेवल नियंत्रण में रखते हुए छ : महीने में आँख के पर्दे की जांच (Fundus Examination) करवाना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार उसका इलाज किया जा सके !
2..डायबिटिक रेटीनोपेथी की वह अवस्था जिसमें छोटी छोटी खून की नए नसे बन जाती है और इनसे रिसाव के कारण पर्दे पर खून के धब्बे आ जाते है ,
PDR कहलाती है PDR में लेसर फोटोकोएगुलेसन करना पड़ता है लेसर का उद्देशय डायबिटिक रेटीनोपेथी को बढ़ने से रोकना है
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डायबिटीज के कारण पर्दे पर होने वली बीमारी तीन प्रकार की होती है -
1..सामान्तय डायबिटिक रेटिनापेथी की शुरूआती अवस्था यानी (BDR) में किसी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है ऐसे मरीजो को शुगर लेवल नियंत्रण में रखते हुए छ : महीने में आँख के पर्दे की जांच (Fundus Examination) करवाना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार उसका इलाज किया जा सके !
2..डायबिटिक रेटीनोपेथी की वह अवस्था जिसमें छोटी छोटी खून की नए नसे बन जाती है और इनसे रिसाव के कारण पर्दे पर खून के धब्बे आ जाते है ,
PDR कहलाती है PDR में लेसर फोटोकोएगुलेसन करना पड़ता है लेसर का उद्देशय डायबिटिक रेटीनोपेथी को बढ़ने से रोकना है
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